अरविंद चतुर्वेद
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यह गरमी तो पिघला देगी!
हमें-आपको पिघला देगी।
झुलस रहे जो फुटपाथों पर
वे क्यों भला बजाएं ताली
नेताजी की आग उगलती बातों पर!
झटके पर झटका खाते हैं
वे बेचारे, सरकार और मौसम की
सारी उलटी-सीधी घातों पर।
लोकतंत्र में लोक कहां है
हमें-आपको सिखला देगी
यह गर्मी तो पिघला देगी।
उन्हें नहीं, जो
यहां-वहां फर्राटे भरते
एसी-कूलर-स्वीमिंग पूल
उनकी सहज अमीरी के
हाथों की मैल-पांव की धूल
यह गरमी सौ मील दूर
भागेगी उनसे,
चील्ड-चील्ड चस्के का
चटखारा लेकर
मौसम उनके लिए मजा है
हमें-आपके लिए सजा है
लोकतंत्र में लोक कहां है
हमें-आपको सिखला देगी
यह गर्मी तो पिघला देगी।
बहुत सटीक रचना!
ReplyDeletevery nice sir
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