अरविंद चतुर्वेद :
बोलो यारो, अब भी क्या कुछ बाकी रहा जमाने में
कटे जिंदगी अपनी ऐसे, जैसे जेहलखाने में!
बोझा ढोओ मत सुस्ताओ
हंसकर कहो कहानी,
बीते जुग की बात नहीं है
राजा भी हैं, रानी
उनके घोड़े-हाथी भी हैं सबकुछ है तहखाने में
कटे जिंदगी अपनी ऐसे, जैसे जेहलखाने में!
बाढ़, गरीबी और भुखमरी
सब ईश्वर के हाथ है,
ईश्वर का लायक बेटा तो
बिल्कुल दामन-पाक है
माटी, कोइला, धूल-धुआं सब तेरे खाते-खाने में
कटे जिंदगी अपनी ऐसे, जैसे जेहलखाने में!
देखो, उनका कपड़ा-लत्ता
उनकी मोटर कार,
बरसात बावरी तुम पर भाई
आए कीचड़-मार
तुम जाड़े में ठिठुरो जादू नाखूनी दस्ताने में
कटे जिंदगी अपनी ऐसे, जैसे जेहलखाने में!
waah bahut sundar geet...
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