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Sunday, May 16, 2010

निरुपमाओं के लिए निर्मम खाप फरमानों के इस दौर में

यह बेहद क्रूर और कठिन दौर है कोमल-तरल सम्बंधों के लिए। खूबसूरती के खिलाफ बदसूरत और सुगंध के खिलाफ दुर्गन्ध भरा दौर। निरूपमाओं के लिए निर्मम खाप फरमानों के इस दौर में पढि.ए नीलेश रघुवंशी की एक बेहद मार्मिक कविता। हिन्दी कविता की दुनिया में नीलेश रघुवंशी जाना-पहचाना, बहुचर्चित नाम है। अभी-अभी किताबघर प्रकाशन से छपकर आई है उनकी कविता पुस्तक " पानी का स्वाद "। इसी संग्रह की कविता है यह-

छिपाकर
नीलेश रघुवंशी
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पड़ोस के लड़के से ब्याह किया
छोटी बहन ने
सबसे छोटी और लाड़ली बेटी
छोड़कर गई मां को, रोई नहीं कंधे से लगकर
लाख रोई मां, सोई रही कई दिन,
फिर भी नहीं पिघले पिता और भाई
छोड़ा मोहल्ला बहन और लड़के ने
रावण की गैल और सीता का मायका
एक जगह कैसे?

जानता है लड़का अच्छी तरह, मां की सीता
को हरकर ले गया वह
मां जी-भर कोसती है लड़के को
मेरी फूल-सी नाजुक लड़की को ले गया
बहला-फुसलाकर
कहीं का नहीं छोड़ा पापी ने
छोटी बहन सुनेगी तो हंसेगी खूब,
झूल जाएगी गले से मम्मी कहते
हाथ में दीया-माचिस लेकर जाती है मां
मंदिर, दोनों समय कई बरसों से

घंटों बैठती है अब मंदिर में मां
कभी-कभार कांख में छिपाकर
दीये के संग ले जाती है अचार
मां छोटी बहन से मंदिर में मिलती है।

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