(मुंडारी लोकगीत का काव्यांतर : सोलह)
देखो जरा, आकाश में आगामारी पंछी
कैसे उड़ रहे हैं कतार में
उनके डैनों के छोर पर
गोया चमचमा रही हैं चांदी की झालरें।
और देखो, वर्षा को निमंत्रण देनेवाले
चील और हेडे पंछी भी
कैसे उलट-पुलट कर उड़ रहे हैं
जिनके गले में सुशोभित है मूंगों की माला।
पंखों में चांदी की झालर पहने
ये पंछी भला कहां उतरने वाले हैं?
गले में मूंगों की माला पहने
ये पंछी भला किधर जा रहे हैं?
बुंडू बाजार के मैदान में लहरा रहे हैं
चमा घास के फूल,
देखो, वे उन्हीं पर उतर गए।
और देखो, वे चले जा रहे हैं तमाड़ की ओर
वहां की तराई में
डम्बुर घास की कलियां
लहलहा रही हैं।
bahut bahut badhai
ReplyDeleteshekhar kumawat
very nice srr ji good after noon
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