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Monday, May 3, 2010

॥ डरपोक और डिगने वाले नहीं॥

(मुंडारी लोकगीत का काव्यांतर : पंद्रह)

डूराडीह गांव का कुंदन मुंडा
नहीं है डरपोक,
रामगढ़ का रतन मुंडा डिगने वाला नहीं है।

धौंस-पटूटी जमाने वालों और
दारोगा-सिपाहियों से
नहीं डरने वाला वह,
छैल चिकनिया बाबुओं के
झांसे में नहीं आनेवाला
नहीं है डिगने वाला वह,

चटूटान जैसी छाती है उसकी
वह डरने वाला नहीं है।
लकड़ी के कुंदे जैसी भुजाएं हैं उसकी
वह डिगने वाला नहीं है।

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