(मुंडारी लोकगीत का काव्यांतर : चौदह)
हे मैना पाखी!
देखो, सिसई का चारागाह
जलने लगा है
तुम कहां चुगने जाओगी?
देखो मैना,
तुम्हारा तेलई का मैदान भी
झुलसने लगा है
कहां से तुम चुनोगी तिनका?
देखो, आधा चारागाह जल रहा है
तो आधे में चुगो
झुलसते मैदान के बचे हुए
हिस्से में चुनो अपने तिनके
अरे, तुम तो चुगते-चुगते
आधा जल गई, मैना!
हाय झुलस गई आधा
तिनका चुनते-चुनते!
ओह, तेरी चोटी का पंख जल गया
हाय तेरे गले का हार झुलस गया।
बहुत सुन्दर रचना..."
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