(मुंडारी लोकगीत का काव्यांतर : तेरह)
हे भइया, अगर भौजाई लाओ
तो खाते-पीते घर से ही लाना
जहां शुद्ध हंड़िया पी जाती हो
आचार-विचार अच्छे हों
मान-मर्यादा अच्छी हो।
यह कैसे मुमकिन है भाई,
हम तो बिन मां के- अनाथ हैं
कैसे मिलेगा ऐसा घर
हमारे पिता भी नहीं- अनाथ हैं!
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