साथ-साथ

Tuesday, April 27, 2010

॥ कंदमूल और मछलियां॥

(मुंडारी लोकगीत का काव्यांतर : ग्यारह)

भेलवा और कुसुम के पेड़ों वाली ढलान पर
देखो, लहलहा रहे हैं कंदमूल
झाड़ियों से ढंके नाले और
लताओं से पटी तराई के पानी में
मछलियां खेल रही हैं आंखमिचौनी

लहलहाते कंदमूल को खोद लाओ दोस्त
आंखमिचौनी खेलती मछलियां पकड़ लाओ!

अरे दोस्त, कंदमूल खोदने गया
तो वे सब जड़ों से चिपक कर बैठ गए
और मछलियां पकड़ने गया
तो सब की सब मेंढक बन गई।

3 comments:

  1. वाह । क्या खूब लिखा है..."

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  2. और मछलियां पकड़ने गया
    तो सब की सब मेंढक बन गई।


    GOOD

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