साथ-साथ

Saturday, April 24, 2010

॥ एक पलड़े के तराजू वाले॥

(मुंडारी लोकगीत का काव्यांतर : दस)

पहाड़ों की ढलान से उतरने वाले
और तराई के रास्तों पर चलने वाले
ये व्यापारी गण।

झूमते-झामते उतरने वाले और
आहिस्ता-आहिस्ता बढ़ने वाले
ये व्यापारी गण।

इमली के वृक्ष तले सुस्ताने वाले
अमराई में डेरा डालने वाले
ये व्यापारी गण।

अरे भाई, क्या यही नमक के व्यापारी हैं
क्या ये ही हैं लहसुन-प्याज के सौदागर?
अरे भई हां, ये ही नमक के व्यापारी हैं
ये ही हैं लहसुन-प्याज के सौदागर-

एक पलड़े के तराजू वाले लोग यही हैं
और ये ही हैं जो लहसुन के बदले
लेते हैं चार-चार चीजें!

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