(मुंडारी लोकगीत का काव्यांतर : आठ)
साल वृक्ष की कोंपलों पर बैठे
क्यों मिरू पाखी, तुम ही रोया करोगे?
गोरार लताओं की झाड़ी में
कारे पाखी, तुम्हारी छाती की धड़कन ही
क्यों सुनाई देती है?
हे दुनिया वालो, मैं ही रोता हूं
क्योंकि साल वृक्ष की डाल टूट गई है
हे भाई, मेरी छाती की ही धड़कन सुनाई देती है
क्योंकि वृक्ष का तना खोखला हो गया है।
हे मिरू, रोओ मत
कल ही नई डाल निकल आएगी
घबराओ नहीं कारे पाखी,
तने का खोखलापन भर जाएगा अगले ही दिन।
नहीं भाई, दूसरी डाल भले ही निकले
वह पहली जैसी नहीं होगी
नहीं दोस्त, नहीं, खोखलापन भर भी जाए
तब भी पहले जैसा मजबूत नहीं होगा तना।
bahut sundar geet hai .
ReplyDeleteहिन्दीकुंज
bahut sundar rachana
ReplyDeleteshekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/