(मुंडारी लोकगीत का काव्यांतर : छह)
हे सखी, अगर जंगल में लकड़ी लाने जाना
तो कभी आगे मत रहना!
हे बहन, अगर जंगल में पत्ते चुनने जाना
तो कभी पीछे नहीं रहना!
इस जमाने में
बदसूरत कुल्हाड़ी ही शेर बन गई है,
कभी आगे नहीं रहना!
मुडे. हुए पत्ते ही
आजकल सांप बन गए हैं,
कभी पीछे नहीं रहना!
बदसूरत कुल्हाड़ी ही शेर बन गई है,
ReplyDeleteकभी आगे नहीं रहना!
मुडे. हुए पत्ते ही
आजकल सांप बन गए हैं,
कभी पीछे नहीं रहना!
bahut sundar rachna
acha laga pad kar
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/