साथ-साथ

Tuesday, April 13, 2010

॥ अयोध्या सुलग रही है॥

(मुंडारी लोकगीत का काव्यांतर : चार)
हे राम-लक्ष्मण
देखिए, लंका जल रही है!
हे सीता ठकुरानी
देखिए, अयोध्या सुलग रही है!

किसने आग लगाई
लंका धधक रही है?
किसने फेंकी चिनगारी
अयोध्या सुलग रही है?

धांगर ने लगाई आग
लंका धधक रही है
मायावी की चिनगारी से
देखो, अयोध्या सुलग रही है।

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