साथ-साथ

Monday, April 12, 2010

॥ बित्ता भर पेट के लिए॥

(मुंडारी लोकगीत का काव्यांतर : तीन)

टूटी-फूटी झोपड़ी का यह हाल
कि हर तरफ चू रहा है बरसात का पानी
खपरैल वाले घर की ऐसी हालत
कि जहां-तहां से घुस रहा है बरसात का पानी

क्यों छाजन के लिए पहाड़ पर
नहीं है साउड़ी घास
जो हर तरफ चूने लगा है पानी?
नदियों में क्या नहीं है बड़ोवा घास
कि घर में जहां-तहां घुसने लगा पानी?

हाय, बित्ता भर पेट के लिए
हमने साउड़ी तो बेच दिया!
ओह, दो हाथ कपड़े की खातिर
बड़ोवा दूसरों के हवाले कर दिया!

No comments:

Post a Comment