साथ-साथ

Sunday, April 11, 2010

॥ दिनचर्या॥

(मुंडारी लोकगीत का काव्यांतर : दो)

उठ बिहान मैं खेत गई थी धान रोपने
दुपहरिया तक पूरी हुई रोपाई
रस्ते की चढ़ान और उतराई
दौड़ी-दौड़ी घर आई
घर से फिर पड़ोस के गांव जोजोहातू गई
वहां किया बनिहारी

लौटी घर
उसको कूट-पीस कर
पकाया साग-भात
तब तक शाम घिर आई,
आने लगी अखाड़े पर
अब बंसी-मांदल की आवाज
सखियां मेरी, हाय वहां पर
करती होंगी इंतजार!

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