साथ-साथ

Thursday, December 31, 2009

छप्पर की छाया तले

सुबह हो गयी दोपहर हुई दोपहर शाम ।

वह खटता है खेत में तू जपता है राम ॥

बैठ पेड़ की छाहँ में रोया बहुत किसान ।

सौ सपनों की कब्र है मालिक का खलिहान ॥

मालिक तेरे खेत में मेहनत अपनी बाँझ ।

सूर्योदय हम चाहते , नहीं अँधेरी सांझ ॥

कहाँ बजेंगी ढोलकें, कहाँ पड़ेगी थाप ।

हरियाली से दिल जले निकले कुँए से भाप ॥

सूना चौबारा पडा, सूनी है चौपाल ।

आब गया अब गाँव का आल्हा - ढोलक - ताल ॥

लूट मची है गाँव में घर - घर हाहाकार ।

तू बहरा - खामोश है तुझको सौ धिक्कार ॥

छप्पर की छाया तले कटते बारह मास ।

यह छाया ही जानती मौसम का इतिहास ॥

2 comments:

  1. अच्‍छी रचना .. आपके और आपके पूरे परिवार के लिए नया वर्ष मंगलमय हो !!

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  2. वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाने का संकल्प लें और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।

    - यही हिंदी चिट्ठाजगत और हिन्दी की सच्ची सेवा है।-

    नववर्ष की बहुत बधाई एवं अनेक शुभकामनाएँ!

    समीर लाल
    उड़न तश्तरी

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