साथ-साथ

Friday, January 1, 2010

झारखंड में जाड़ा

सुबह आँख मलती हुई, लिए कंपकंपी शाम ।

मन में गरमी भर सके जपो धुप का नाम॥

पाला पड़ता फसल पर दिल में जले अलाव ।

इस हरजाई ठण्ड को गाली देता गाँव ॥

पांवों में चुभने लगी सुबह - सुबह की दूब।

माली निकला बाग़ की हरियाली से ऊब ॥

बिस्तर में गठरी बनो डाले पेट में पाँव ।

सारे घर को ठण्ड ने बना लिया है ठांव ॥

बरगद कहे अधीर हो बर्फानी मत छेड़ ।

कुछ तो शर्म - लिहाज़ कर, अब मैं हुआ अधेड़ ॥

ठंडक बढती ही गयी कोहरे का फैलाव ।

लोग इकट्ठा हो गए जलते गए अलाव ॥

खांसी की ठकठक हुई जगी चिलम की आग ।

दिल से एक धुंआ उठा या पीड़ा का राग ॥

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