मौसम है मनमोहन जैसा
सबकुछ हो गया ग्लोबल - ग्लोबल, लोकल जैसा - तैसा ।
ख़बर रसीली बड़ी नशीली सैफ - करीना जैसी,
चैनल - चैनल मस्ती छाई, देखो गदह पचीसी ।
ठंडी जेब, तबीयत ठंडी, मन - मिजाज़ है ठंडा,
लोग पहेली बूझ रहे हैं पहले मुर्गी या अंडा ।
बड़े ठसक से बैंक गए थे सूरत हो गयी रोनी,
नकली नोट मिल गए भइया क्या होनी - अनहोनी ।
खेत बिक गए, भैंस बिक गयी, छुट्टा घूमे भैंसा
हम भी यहीं आप भी यहीं हुआ तमाशा ऐसा ॥
No comments:
Post a Comment