राजा परेशान था
और बेनींद
परेशान था की
जनता अयोग्य हो गयी है
भला जाहिलों का प्रतिनिधि होकर
उसे कैसे आ सकती थी नीद !
और ठीक इसी तरह पैदा हो गया तानाशाह ।
एक राजा के सपनों में
जाहिलों की ताकझांक
क्या बर्दाश्त की जा सकती है ?
हरगिज़ नहीं, श्रीमान !
और ठीक इसी जगह पैदा हो गया तानाशाह ।
उस वक्त रात के कोई बारह बजे होंगे
जब बेनीद सूजी आंखों वाले राजा ने
एक गिलास पानी पीया होगा,
राजा को महसूस हुआ की
पानी से भरे गिलास पर भी
जाहिल प्रजा की उँगलियों की छाप है
यह तो हद है भई, गुस्ताखी की !
यह सूखे का वक्त था
भायं - भायं करते अकाल का
और राजा ठंडे पानी से गला तर कर रहा था
और गिलास पर अयोग्य जनता की
उँगलियों की छाप थी,
तो क्या राजा के सपने यूँ ही
बेनीद बेपनाह हो जाएँ ?
यूँ ही तो नहीं मिला है राज - काज !
और ठीक इसी वक्त पैदा हो गया तानाशाह ।
राजा ने मंत्रियों को खारिज किया
और संतरियों की बहाली कर ली
उसने हुक्म जारी किया की
उसके सपनों के चारों तरफ़
कंटीले तारों का घेरा खडा कर दिया जाए
बल्कि आदमकद से ऊंची
दीवारें ही खड़ी कर दी जाएँ,
एक भी जाहिल आदमी
सपनों में ताकझांक न कर सके
और राजा सो सके चैन से ।
आख़िर अयोग्य जनता को
खारिज करने का और उपाय क्या था !
एक भी जाहिल आदमी
ReplyDeleteसपनों में ताकझांक न कर सके
और राजा सो सके चैन से ।
आख़िर अयोग्य जनता को
खारिज करने का और उपाय क्या था !
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कमजोर लोकतंत्र में ऐसे ही तानाशाह पनपते हैं। जबर्दस्त कविता।
bahut hi khubsurat kavita hai
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