आज कोई कविता नहीं । उसकी जगह उन सभी सम्मानित रचना धर्मियों - कर्मियों, कविता प्रेमियों - मर्मियों को मैं ह्रदय से कृतज्ञता व्यक्त करना चाह रहा हूँ जिन्होंने मेरी कवितायेँ पढ़ी और अपनी आत्मीय टिप्पणी से मेरा यह भरोसा मजबूत किया की तुमुल कोलाहल कलह के बीच भी बिना शोर किए आवाज़ में असर पैदा किया जा सकता है। उन सम्मानितों का नाम लूँ , इसके पहले एक छोटा प्रसंग - कोलकाता के जनसत्ता में जब सबको कंप्यूटर पर काम करना जरूरी किया जा रहा था, तब हमारे प्रधान सम्पादक प्रभाष जोशी ने मुझसे पूछा - कविता कठिन है या कंप्यूटर ? मेरा जवाब था - बेशक कविता कठिन है । हालांकि मुझे कंप्यूटर भी तब कठिन लग रहा था और आज भी बस कामचलाऊ मामला है।
दोस्तों, मैं यह मानता हूँ की कविता तभी तक लिखी जा सकती है , जबतक उसे पढने वाले हैं - ठीक वैसे ही जैसे गाये और सुने न जाएँ तो गीत कैसे लिखे जा सकते हैं ? यानी रचना लिखने और पढने-सराहने वाले की साझेदारी में ही सम्भव है । इसलिए मैं उड़न तश्तरी वाले समीर लाल, अफलातून, आवेश तिवारी, पंकज पराशर, राजेश उत्साही, शरद कोकास, डाक्टर राधेश्याम शुक्ल, मधुकर राजपूत, अजित वडनेरकर, परमजीत बाली, लोक्संघर्ष वाले सुमन जी, नीरज गोस्वामी, अनिल कान्त, वानीगीत, देवेन्द्र खरे, मनोज कुमार, अलका सारावत, अंशुमाली रस्तोगी, दिनेश दधीची, पीसी गोदियाल, प्रवाह वाले पंकज जी, अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी, प्रवीण त्रिवेदी, शेष नारायण सिंह, निर्मला कपिला, रजनीश परिहार, भंगार, घुघूती बासूती, अलबेला खत्री, राजेय शा, एम् वर्मा, मिथिलेश दुबे, अजय कुमार, अरुण सी रॉय, अमित के सागर, मनोज कुमार सोनी, नारद मुनि, विजय कुमार कुशवाहा, अमलेश राय - को अपनी कविताओं का साझीदार मानकर आभार जताता हूँ । कुछ मित्र तो मेरे ब्लॉग के फालोवर ही बन गए हैं - सबका आभारी हूँ , उनका भी - जिन्होंने कविताएँ पढ़ी तो होंगी मगर अपनी राय नहीं दे सके ।
कल फिर कविता लेकर हाज़िर होऊंगा। नमस्ते दोस्तों !
सहमत!
ReplyDeleteकविता के संश्लिष्ट होने की कोई बराबरी ही नहीं !
इन्तजार रहेगा कल!
ReplyDeleteशुभकामनाएँ.