साथ-साथ

Thursday, December 10, 2009

एक पुरानी कहानी

एक दीपक

रात भर जलता रहा, जलता रहा

घुप अँधेरा

बर्फ - सा

गलता रहा, गलता रहा ।

यह ख़बर

बिल्कुल न मिल पाए

प्रजा को मन्त्रिवर

एक दीपक

झूम कर

जलता रहा, जलता रहा ।

पता चलते ही

पलटकर यह सफा इतिहास का

सम्राट

मोतीजाल बस बुनता रहा ।

दीप ही जलने लगें

तो मुकुट चमकेगा कहाँ !

कौन था वह राजद्रोही

यह सबक देता रहा ।

गुप्तचर छोड़े गए हैं

तबसे उसकी टओह में

नहीं मिलता वह

न जाने किस जगह रहता रहा ।

आग का संगीत

तबसे गूंजता है

हर तरफ़

क्या कहूं

इतनी भयानक बात है, आलीजहा !

3 comments:

  1. वाह!! बहुत जबरदस्त रचना.

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  2. वाह
    अत्यंत उत्तम लेख है
    काफी गहरे भाव छुपे है आपके लेख में
    .........देवेन्द्र खरे

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  3. बहुत सुन्दर शब्द और अत्यंत सुन्दर

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