तुम्हारी बुद्धि मारेगी तुम्हारा मन
बनोगे ख़ुद के तुम दुश्मन
कैरियर का ग्राफ ऊपर तब उठेगा
जिंदगी के रंग से जब हाथ धो लोगे
भेद खोलोगे नहीं तुम
आग बुझने का
बस धुआं ऊपर उठेगा
और ऐसे धुंधलके में तुम
फिरोगे ख़ुद की छाया बन
तुम्हारी बुद्धि मारेगी तुम्हारा मन ...
तुमने अब तक कितनी रूई
धुन लिया प्यारे
बुन लिया ख़ुद के लिए
ऐसा चमकता जाल
की जिसको तोड़कर बाहर निकलना
नहीं मुमकिन, नहीं कोई हाल
अब नहीं गलती तुम्हारी दाल
ख़ुद के लिए तुमको मिला
यह आत्म निर्वासन-
तुम्हारी बुद्धि मारेगी तुम्हारा मन
बनोगे ख़ुद के तुम दुश्मन !
बहुत सुन्दर शब्द और अत्यंत सुन्दर भाव...वाह...अद्भुत रचना रच डाली है आपने...बधाई..
ReplyDeleteनीरज
वाह व्यंग्यात्मक अंदाज़ में अच्छी बातें कहीं आपने
ReplyDeleteबुद्धि मारेगी तुम्हारा मन ...
ReplyDeleteइसीलिए तो हमेशा दिमाग पर दिल को ही तरजीह दी है ...!!
अत्यंत सुन्दर अद्भुत
ReplyDelete