एक दीपक
रात भर जलता रहा, जलता रहा
घुप अँधेरा
बर्फ - सा
गलता रहा, गलता रहा ।
यह ख़बर
बिल्कुल न मिल पाए
प्रजा को मन्त्रिवर
एक दीपक
झूम कर
जलता रहा, जलता रहा ।
पता चलते ही
पलटकर यह सफा इतिहास का
सम्राट
मोतीजाल बस बुनता रहा ।
दीप ही जलने लगें
तो मुकुट चमकेगा कहाँ !
कौन था वह राजद्रोही
यह सबक देता रहा ।
गुप्तचर छोड़े गए हैं
तबसे उसकी टओह में
नहीं मिलता वह
न जाने किस जगह रहता रहा ।
आग का संगीत
तबसे गूंजता है
हर तरफ़
क्या कहूं
इतनी भयानक बात है, आलीजहा !
वाह!! बहुत जबरदस्त रचना.
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteअत्यंत उत्तम लेख है
काफी गहरे भाव छुपे है आपके लेख में
.........देवेन्द्र खरे
बहुत सुन्दर शब्द और अत्यंत सुन्दर
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