यार भी हैं लोग भी
चौरास्ते हैं और घर
क्या बात है की नहीं लगता
मुझे ये अपना शहर ।
मैंने सुना था ये शहर
है शरीफ लोगों का
कहते हैं मगर लोग
सुनो, है बड़ा बदनाम शहर ।
लोग कहते हैं मुसाफिर
बड़ा अनजान है तू
रोशनी की चाह छोड़
चलो उससे संभल कर ।
ताजुब है एक शानदार
इमारत की बगल में
बैठे हैं यहाँ छिपे हुए
कई - कई खँडहर ।
शुक्र कीजै की आसमान से
पत्थर नहीं बरसे
वरना किस हाल में होता
ये बिना छत का शहर !
बहुत सुन्दर शब्द और अत्यंत सुन्दर भाव...वाह...अद्भुत रचना रच डाली है आपने
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