साथ-साथ

Thursday, December 3, 2009

तीन तिलंगे

मेरे शहर के तीन तिलंगे

तीनों नंगे

गांधी के बन्दर - अवतार

तीनों छाप रहे अखबार

उपदेश ओढ़कर कारोबार

बढ़ती जाती जीवन की मार

फसल काटते शान्ति - प्रेम की

जब - जब होते दंगे ।

एक भरे गोदाम - तिजोरी

दूजे को कुर्सी प्यारी

और तीसरा मस्जिद - मन्दिर

का मौलवी - पुजारी

जनता भूख - भजन की मारी

जनता को खाए बीमारी

इसकी उनसे कैसी यारी

उनको लागे नगरी प्यारी

उनकी सेहत का क्या कहना

तीनों घूमें चंगे

तीन तिलंगे - तीनों नंगे !

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर शब्द और अत्यंत सुन्दर भाव अद्भुत रचना

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