मेरे शहर के तीन तिलंगे
तीनों नंगे
गांधी के बन्दर - अवतार
तीनों छाप रहे अखबार
उपदेश ओढ़कर कारोबार
बढ़ती जाती जीवन की मार
फसल काटते शान्ति - प्रेम की
जब - जब होते दंगे ।
एक भरे गोदाम - तिजोरी
दूजे को कुर्सी प्यारी
और तीसरा मस्जिद - मन्दिर
का मौलवी - पुजारी
जनता भूख - भजन की मारी
जनता को खाए बीमारी
इसकी उनसे कैसी यारी
उनको लागे नगरी प्यारी
उनकी सेहत का क्या कहना
तीनों घूमें चंगे
तीन तिलंगे - तीनों नंगे !
बहुत सुन्दर शब्द और अत्यंत सुन्दर भाव अद्भुत रचना
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