मुझे उड़ा दो
हवा में, धूल में
तूफ़ान - झंझावात में
मिट्टी में मिला दो
घोल दो पानी में
कम -अज -कम
आदमी जब साँस लेगा
उसमे मैं रहूँगा ।
रोष में, क्षोभ में
गुस्सा -विद्रोह में
रहेगी मेरी छाया ।
प्यासे की अंजुरी में
एक घूँट पानी बनकर
उसके गले के नीचे उतर जाऊंगा
मिट्टी में भी रहूँगा
तो फसल की पत्तियों और फलियों में
बना लूंगा अपनी गुंजाइश
अन्न बन जाना
बेहतर होगा मेरे लिए
कांपते पत्ते पर ठहरी बूँद की तरह
मुझे रहने दो शब्दों की खामोशी में
मैं बार -बार लौटूंगा
भरोसे के लिए भाषा में
यही है मेरा स्थाई पता ।
कांपते पत्ते पर ठहरी बूँद की तरह
ReplyDeleteमुझे रहने दो शब्दों की खामोशी में
बहुत सुन्दर रचना. बिम्ब जीवंत