हालांकि उस मोटी किताब के पन्नों में
कहीं -कहीं किसी गवाक्ष से झांकता
उनका चेहरा दीख जाता है - कर्णावती पद्मावती जैसा
और होनहार विद्यार्थी
चाँद बीवी, नूरज़हां, मुमताज़ महल, जीनत महल आदि
दस -पाँच नाम भी जानते हैं
लेकिन किसी दीवार में चिन दी गयी बादशाह की बेवफा प्रेमिका
या किसी नौकर से प्रेम करने वाली बिगडैल शहजादी के अलावा
इतिहास में कहाँ हैं स्त्रियाँ ?
ज्यादा से ज्यादा यह जानकारी मिलती है की
दो -चार महल में रहती थीं
और ढेर सारी हरम में ।
हाँ, अलग से दिखाई पड़ती है रजिया बेगम
घोडे पर सवार
और उसका गुलाम प्रेमी लगाम थामे पैदल जाता हुआ
लेकिन वह भी कितनी अकेली -सी दिखती है ।
जब इतिहासकार विजेताओं के
घोडों की हिनहिनाहट, हाथियों की चिग्घाड़
दौड़ते रथों की सरपट घरघराहट का वर्णन करता है
और इतिहास के पन्नों पर फ़ैल जाती है
छूटे गोलों की बारूदी गंध
तब हम सोच सकते हैं की
अचानक थम गए किसी लोकगीत की अनुगूंज की तरह
थरथराती, एक तरफ़ खामोश खडी हैं स्त्रियाँ
या फ़िर मवेशी की तरह हांककर ले जाया जा रहा है उन्हें
विजेता शिविरों की तरफ़
इतना और अंदाजा लगा सकते हैं की
यह इतिहास में शाम का वक्त है
और अँधेरा उगलती रात बस उतरने ही वाली है ।
युद्ध के इतिहास में जीवन का सूर्योदय नहीं खोजा जा सकता
लेकिन इतने पर भी हम सोच सकते हैं की
वे तब भी बच्चे पैदा करती थीं
और उन्हें पिलाती ही रही होंगी छातियों का दूध
पर सच पूछिए तो
स्त्री के इतिहास के बारे में
हमारी ठोस जानकारी इतनी ही है की
अधिक से अधिक हम अपनी माँ की माँ को जानते हैं
जिसे नानी कहते हैं
इसीलिये इससे ज्यादा कुछ बता पाने में
इतिहास की भी नानी मरती है
कुल मिलाकर हारे हुए पूर्वजों के आंसू में नहाए
या विजेता पूर्वजों के अट्टहास में सहमे
बिना माँ के बच्चों की तरह
कितने विपन्न हैं इतिहास के विद्यार्थी
हाय, कितना विपन्न है स्त्री विहीन इतिहास ।
टॉप
आज दो दिन बाद आपके भावना मंच पर आने का मौका मिला। हाथ नहीं मिला सकता से लेकर, इतिहास में स्त्रियां तक सब कुछ पढ़ा। बहुत उद्वेलित भी करता है और कई शंकाओं के साधारण नज़र आने वाले सुंदर समाधान भी मिल जाते हैं। कई भावनाएं ऐसी होती हैं जिन्हें मैं चाहकर शब्द नहीं दे पाता, लेकिन आपको पढ़कर लगता है मेरी भी अभिव्यक्ति हो गई और उसके अलावा हर शब्द से सैकड़ो नए विचार मिल गए।
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