साथ-साथ

Saturday, November 14, 2009

लिखना चाहता हूँ

मैं जीना चाहता हूँ प्यार से

लिखना चाहता हूँ

एक कविता विस्तार से

पोछ देना चाहता हूँ पसरी हुई सारी उदासी

ह्रदय के पठार से ।

चारों तरफ़ घिरे हुए इस बाड़े में

मैं कब से घूम रहा हूँ

डूब रहा हूँ एक दुर्गन्ध में

इस घेरे को तोड़ देना चाहता हूँ मुकम्मल इनकार से ।

अखाडा -धर्म की धूल में मुझे नहीं लिपटना

भुस के पुतलों को पटखनी देकर

अपने गले में मुझे माला नहीं डालना

वे जाते हैं

अयोध्या -काशी , काबा -मक्का

तो जाएँ

मक्का जाने के बजाय

मैं मक्के की खेती करूंगा

मुझे कुछ नहीं लेना उनकी ललकार से

मुकाबला करूंगा उनका भूख की चीत्कार से ।

आपको जाना है तो जाइए

बुश या लादेन या सद्दाम के साथ

मैं जा रहा हूँ

अपने पड़ोसी हज्जाम के साथ ।

मैं जीना चाहता हूँ प्यार से

लिखना चाहता हूँ एक कविता विस्तार से ...

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