मैं जीना चाहता हूँ प्यार से
लिखना चाहता हूँ
एक कविता विस्तार से
पोछ देना चाहता हूँ पसरी हुई सारी उदासी
ह्रदय के पठार से ।
चारों तरफ़ घिरे हुए इस बाड़े में
मैं कब से घूम रहा हूँ
डूब रहा हूँ एक दुर्गन्ध में
इस घेरे को तोड़ देना चाहता हूँ मुकम्मल इनकार से ।
अखाडा -धर्म की धूल में मुझे नहीं लिपटना
भुस के पुतलों को पटखनी देकर
अपने गले में मुझे माला नहीं डालना
वे जाते हैं
अयोध्या -काशी , काबा -मक्का
तो जाएँ
मक्का जाने के बजाय
मैं मक्के की खेती करूंगा
मुझे कुछ नहीं लेना उनकी ललकार से
मुकाबला करूंगा उनका भूख की चीत्कार से ।
आपको जाना है तो जाइए
बुश या लादेन या सद्दाम के साथ
मैं जा रहा हूँ
अपने पड़ोसी हज्जाम के साथ ।
मैं जीना चाहता हूँ प्यार से
लिखना चाहता हूँ एक कविता विस्तार से ...
बहुत खूब ,। लाजवाब रचना
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