एक साधारण आदमी की तरह
मैं लिपटा रहा भूख से - बेगारी से
मेहनत - महामारी से
बेशर्म की तरह , आदत से लाचार
अब भी मैं करता हूँ प्यार
किसी नारी से
घृणा व्यभिचारी से
मैं नहीं मिला सकता हाथ किसी व्यापारी से ।
जानता हूँ
सफलता के लिए घातक हैं ये आदिम आचार
मेरे हिस्से आती है हार
इसी लिए बार -बार
फ़िर भी मैं जगता हूँ , सूतता हूँ
और उनकी जीत पर मूतता हूँ ।
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