साथ-साथ

Saturday, November 14, 2009

नहीं मिला सकता हाथ

एक साधारण आदमी की तरह

मैं लिपटा रहा भूख से - बेगारी से

मेहनत - महामारी से

बेशर्म की तरह , आदत से लाचार

अब भी मैं करता हूँ प्यार

किसी नारी से

घृणा व्यभिचारी से

मैं नहीं मिला सकता हाथ किसी व्यापारी से ।

जानता हूँ

सफलता के लिए घातक हैं ये आदिम आचार

मेरे हिस्से आती है हार

इसी लिए बार -बार

फ़िर भी मैं जगता हूँ , सूतता हूँ

और उनकी जीत पर मूतता हूँ ।

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