आए - गए अनेक जन खुला रहा यह द्वार ।
बातें इतनी हो गईं सभी किए दो - चार ॥
तुकडे - तुकडे में जिया हुई समूची भूल ।
एक जगह जुटता नहीं दिल ना करे कबूल ॥
दोस्त मिले तो चोट का पहले करो हिसाब ।
तब फिर अपने दर्द की लिक्खो एक किताब ॥
एक मरुस्थल पार कर पहुँच नदी के पास ।
यह जीवन संग्राम है लिए कंठ में प्यास ॥
कभी प्यार से ले लिया अगर फूल का नाम ।
मन में काँटा चुभेगा सुबह - दोपहर - शाम ॥
मन व्याकुल तरसे बहुत लिए कंठ में प्यास ।
भरे ताल - से नैन हों दिल हो स्वच्छ अकास ॥
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