साथ-साथ

Friday, November 27, 2009

भरे ताल - से नैन

आए - गए अनेक जन खुला रहा यह द्वार ।

बातें इतनी हो गईं सभी किए दो - चार ॥

तुकडे - तुकडे में जिया हुई समूची भूल ।

एक जगह जुटता नहीं दिल ना करे कबूल ॥

दोस्त मिले तो चोट का पहले करो हिसाब ।

तब फिर अपने दर्द की लिक्खो एक किताब ॥

एक मरुस्थल पार कर पहुँच नदी के पास ।

यह जीवन संग्राम है लिए कंठ में प्यास ॥

कभी प्यार से ले लिया अगर फूल का नाम ।

मन में काँटा चुभेगा सुबह - दोपहर - शाम ॥

मन व्याकुल तरसे बहुत लिए कंठ में प्यास ।

भरे ताल - से नैन हों दिल हो स्वच्छ अकास ॥

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