साथ-साथ

Sunday, November 15, 2009

सुखी आदमी की दिनचर्या

सुबह की चाय के साथ

वह बिस्तर में पढ़ता है कुछ हाट खबरें

ताकि नींद की खुमारी उड़न -छू हो जाए

इस तरह सुबह - सुबह तरोताजा होने में

आज भी अखबार वाकई बड़े उपयोगी हैं

दूसरा फायदा यह है की

दोपहर के टिफिन आवर में

गपशप की खुराक दे जाती हैं ऐसी खबरें ।

दाढी बनाते वक्त

आधे गाल लगे साबुन और टेढ़े मुंह की हाँ - हूँ के साथ

पूरी गंभीरता से सुनता है सुखी आदमी

पत्नी की फरमाइश

और बच्चों की शरारत की शिकायतें ।

नाश्ते की टेबुल पर

याद करता है कुछ ताजे चुटकुले

जो काम आयें दफ्तर में बॉस को सुनाने के

एक सुखी आदमी जानता है की

कमबख्त कितना कठिन हो चला है आजकल

किसी आदमी को हंसाना भी ।

सुखी आदमी रास्ते की दुश्चिंताओं को धकेल कर

शाम को देखता है घर लौटकर टीवी के विज्ञापन

और किसी दुहस्वप्न से पहले

देर रात की फिल्म देखकर सो जाता है ।

1 comment:

  1. जी समाज की निगाह में यही सुखी है, भले उसका अंतस दुखी हो। लेकिन समाज की निगाह में हमसे दुखी कोई नहीं,हम शोहदे हैं असामाजिक हैं। अभी कोई दबाव नहीं, दुस्साहस से नौकरी करते हैं। इथिक्स के लिए ज़ुबान तलवार की तरह चलती है। अधिकारी अपना हो या सरकारी, लताड़ने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते। चार 'शोहदे' खड़े होकर गपाष्टक कर लेते हैं, स्वस्थ और अस्वस्थ। हंस भी लेते हैं और हंसा भी देते हैं। टीवी आजतक नहीं रक्खा 10*8 के आशियाने में। नाश्ते खाने की किसने सोची। फाकामस्ती सब दुखों को गला देती है। जिस दिन जिम्मेदारी पीछे लगी कौन जाने हम भी सुखी हो जाएं, लेकिन इस दुख को मैं सारी उम्र जी सकता हूं। सुखी से बेहतर मैं दुखी।

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