साथ-साथ

Sunday, November 15, 2009

गोताखोर

गोताखोर अभी आया है तट पर

घेरे हुए हैं लोग

बहुत दिनों के बाद मिला है उसे काम

इतने दिनों तक कहाँ था वह

क्या करता रहा होगा

कौन जानता है यह !

अभी वह तैयार है गोताखोरी की पोशाक में

पीठ पर बांधे आक्सीजन का बॉक्स

और अजीब तरह से नाक -मुंह ढंके

दूसरे लोक का प्राणी नज़र आता है

उसका भी होगा ही कोई नाम

लेकिन इससे क्या अभी तो वह गोताखोर है

नाव तैयार है

मल्लाह इंतज़ार में हैं

तभी धीरे से चलता है वह

पहले नदी को प्रणाम करता है

फ़िर नाव पर रखता है पाँव

बैठता नहीं , खडा ही रहता है।

तट से दूर जाती नाव पर

वह किसी नायक -सा दीखता है -

लगभग देवदूत की तरह ।

अतल जलराशि में

नव से लगाता है छलाँग -

किसी तेज नुकीले तीर की तरह

नदी की देंह में धंसता

पलक झपकते अदृश्य हो जाता है गोताखोर ।

जल के नीले अंधेरे में

अब हाथ ही बन गए हैं आँख

लम्बी डोर का एक सिरा गोताखोर के हाथ में है दूसरा है नव पर

कुछ देर बाद बुलबुले छोड़ता कछुए की तरह

जल की सतह पर उगता है गोताखोर का सर

फिर -फिर दुबकी लगाता है वह

आख़िर तीसरी पाताल -यात्रा के बाद

खोज लिया उसने डूबी नाव को माल -असबाब समेत ।

अब तैयारी होगी डूबे हुए सामान को बाहर निकालने की

गोताखोर खुश है की उसे मिला है

बहुत दिनों बाद एक काम -

एक बार फिर वह नदी को करता है प्रणाम ।

नदी के अ तल -जल नीले अंधेरे में

हाथ ही बन जाते हैं गोताखोर की आँखें

वरना काम नहीं रहता तो खाली दिनों में दुनिया

नदी -समुद्र से भी गहरी नज़र आती है

गोताखोर को नदी में नहीं

दुनिया में डूब जाने का डर लगता है !

3 comments:

  1. गोताखोर को नदी में नहीं
    दुनिया में डूब जाने का डर लगता है !

    -गजब कह गये आप!! वाह!

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  2. बहुत गहरी बात कही है, मैं भी समीर लाल जी से सहमत हूं।

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  3. सही कहा आपने कर्मठ इंसान को तभी खोजा जाता है जब उसकी जरुरत पड़ती है, वरना तो ये दुनिया अपने स्वार्थो में ही मस्त है !

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