जहाँ - जहाँ है रोशनी , वहीं - वहीं अपराध ।
एक अन्धेरा आपके दिल में है आबाद ॥
गुरू हुए ग्यानी बड़े भरा हुआ है पेट ।
सूत्र और सिद्धांत के बेंचें सौ - सौ रेट॥
नदी किनारे संत जी भव् सागर तैराक ।
बड़ी विधर्मी बाढ़ थी बहा ले गई साथ ॥
ऐनक भीतर कैद है पलक - पलक की छावं ।
कैसा यह पर्यटन है बिन निशान के पाँव ॥
कपडे से लकदक हुए बने छबीले छैल ।
लेकिन सब पहचानते आपके मन का मेल ॥
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बड़ा व्यस्त वह आदमी रोजी -रोटी - आह ।
डूब न जाए एक दिन सपनों की क्या थाह ॥
बहुत बड़ा यह युद्ध है घर - दफ्तर के बीच ।
सपनों को मत पालिए अंसुवन जल से सींच ॥
ऐसे भी कुछ लोग हैं वैसे भी कुछ लोग ।
इक बपुरा मर - मर जिए दूजा मरे निरोग ॥
डर - डर कर तो जी लिए यूँ उसने सौ साल ।
क्यों इतना डरता रहा आख़िर यही मलाल ॥
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