साथ-साथ

Sunday, November 29, 2009

आख़िर यही मलाल

जहाँ - जहाँ है रोशनी , वहीं - वहीं अपराध ।

एक अन्धेरा आपके दिल में है आबाद ॥

गुरू हुए ग्यानी बड़े भरा हुआ है पेट ।

सूत्र और सिद्धांत के बेंचें सौ - सौ रेट॥

नदी किनारे संत जी भव् सागर तैराक ।

बड़ी विधर्मी बाढ़ थी बहा ले गई साथ ॥

ऐनक भीतर कैद है पलक - पलक की छावं ।

कैसा यह पर्यटन है बिन निशान के पाँव ॥

कपडे से लकदक हुए बने छबीले छैल ।

लेकिन सब पहचानते आपके मन का मेल ॥

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बड़ा व्यस्त वह आदमी रोजी -रोटी - आह ।

डूब न जाए एक दिन सपनों की क्या थाह ॥

बहुत बड़ा यह युद्ध है घर - दफ्तर के बीच ।

सपनों को मत पालिए अंसुवन जल से सींच ॥

ऐसे भी कुछ लोग हैं वैसे भी कुछ लोग ।

इक बपुरा मर - मर जिए दूजा मरे निरोग ॥

डर - डर कर तो जी लिए यूँ उसने सौ साल ।

क्यों इतना डरता रहा आख़िर यही मलाल ॥

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