बाप अंगूठा छाप था मरा कलम की मार ।
बेटा पढ़ - लिखकर हुआ धूर्त और मक्कार ॥
खूब लिखा अखबार ने बना जांच आयोग ।
लोकतंत्र में इस तरह मिटते सारे रोग ॥
घर से निकला खुश बहुत पहुंचा बीच बाज़ार ।
मुंह लटकाए लौटता खाई ऐसी मार ॥
शोकसभा, श्रद्धांजली, समारोह का मंच ।
सब मौके की चीज हैं, कब चुके सरपंच ॥
अगर जानना चाहते आज़ादी का सार ।
अपने मन से पूछ लो किसकी है सरकार ॥
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