साथ-साथ

Monday, November 9, 2009

जो होते हैं महज दर्शक

महज जिंदगी के सवाल नहीं होते
वरना विज्ञापित दुनिया में क्या कुछ नहीं होता
सुंदर सजा -धजा घर होता है
घर में सोफा -टीवी -फ्रीज
संचित लोभ और झूठ से ठसाठस भरी अलमारी
चाभी भरे खिलोनों से खेलते
खिलखिलाते बच्चे
खाने की मेज़ पर तरह -तरह के व्यंजन परोसती एक सुंदर नारी
विज्ञापित जिंदगी में क्या कुछ नहीं होता
स्वाद में सदाशयता , सम्बन्ध में मक्कारी
बैठकखाने की दीवार पर टंगा होता है
एक अदद मुखौटा भी खामोश
जिसका किसी चीज में कोई हस्तक्षेप नहीं होता
जो होते हैं महज दर्शक
उनके लिए जिंदगी के सवाल नहीं होते

विज्ञापित दुनिया में बीमारियां नहीं होतीं
न उखड़ती है साँस
न आता है एक सौ चार डिग्री बुखार
लू नहीं चलती
ठण्ड से अकड़ कर कोई नहीं मरता
विज्ञापित दुनिया में अगर जुकाम होता है
तो छींक के साथ
कोई न कोई मरहम भी जरूर होता है
पहुंचाने के लिए राहत
जो दर्शकों को सुकून देता है
वे नहीं होते आहत ।

दर्शकों , आपके मद्देनज़र
खेद है की मेरे पास इस वक्त
राष्ट्र के नाम कोई संदेश नहीं है ।

2 comments:

  1. good night sir,bahut hi sundar hai sir bahut achha laga

    ReplyDelete
  2. पेप्सी लिखकर यंगिस्तान का सिग्नेचर दे देते महोदय तो भी इस राष्ट्र के कर्णधारों के नाम संदेश हो जाता।

    ReplyDelete