मौसम तो इंसान के अन्दर रहता है
मुझसे टकराया मिट्टी का कच्चा घड़ा
और मैं टूट कर बिखर गया
एक हहराती नदी
अचानक मुझे भिगो गयी नीद में
आज तक गीले हैं
मेरे कपड़े
मैं कहाँ सुखाने जाऊं इन्हें
क्या बीती सदी के फ्रीज में
जमाई हुई बर्फ हूँ मैं
जिसे पिघलना है
अब नई सदी की धूप में .
good evenigh sie, bahut hi khubsurat kavita hai
good evenigh sie, bahut hi khubsurat kavita hai
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