मौसम तो इंसान के अन्दर रहता है
कहता हूँ गानेवाली बुलबुल
तभी एक पिंजरा लिए
बढ़ आते हैं हाथ
मैं कहता हूँ - कोई भी एक चिड़िया
इतने में ही
वे संभाल लेते हैं गुलेल
एक गहरी चीख बनकर
रह जाती है कविता
शान्ति के नाम पर
पता नहीं वे किसके विरुद्ध
अभी तक लड़ते जा रहे हैं
एक युद्ध श्रृंखला
पता नहीं वे किसके विरुद्ध अभी तक लड़ते जा रहे हैं एक युद्ध श्रृंखला बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
swagat hai...achchhi kavitaon k liye badhai...aapakaa- arvind sarivastava
पता नहीं वे किसके विरुद्ध
ReplyDeleteअभी तक लड़ते जा रहे हैं
एक युद्ध श्रृंखला
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
swagat hai...achchhi kavitaon k liye badhai...
ReplyDeleteaapakaa
- arvind sarivastava