साथ-साथ

Saturday, October 31, 2009

चीख

कहता हूँ गानेवाली बुलबुल

तभी एक पिंजरा लिए

बढ़ आते हैं हाथ

मैं कहता हूँ - कोई भी एक चिड़िया

इतने में ही

वे संभाल लेते हैं गुलेल

एक गहरी चीख बनकर

रह जाती है कविता

शान्ति के नाम पर

पता नहीं वे किसके विरुद्ध

अभी तक लड़ते जा रहे हैं

एक युद्ध श्रृंखला

2 comments:

  1. पता नहीं वे किसके विरुद्ध
    अभी तक लड़ते जा रहे हैं
    एक युद्ध श्रृंखला
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

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  2. swagat hai...achchhi kavitaon k liye badhai...

    aapakaa
    - arvind sarivastava

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