साथ-साथ

Sunday, October 25, 2009

गुनता हूँ

मैं गुनता हूँ
तुम गिनते हो
मैं बुनता हूँ
तुम बीनते हो
मैं छूता हूँ
तुम छीनते हो

तुम्हारे गिनने - बीनने - छीनने में
मारा जाता है सच
छा जाता है चौतरफा झूठ
कितना होता है उजाड़
कितने होते हैं अनाथ
सूख जाती है हरियाली
हर तरफ़ ठूंठ ही ठूंठ

मैं गुनता हूँ .

No comments:

Post a Comment