साथ-साथ

Saturday, April 14, 2012

और अगर तुम बना नहीं सको अपना जीवन

यात्रा बुक्स, दिल्ली से छपी है कवाफी की कविताओं की किताब, जिसका नाम माशूक है। उनकी कविताओं का बहुत ही शानदार अनुवाद किया है पीयूष दईया ने। पीयूष स्वयं एक अच्छे कवि हैं।

॥ जहां तक हो सके॥

कवाफी

जैसा चाहो वैसा
तो कम से कम इतना करो उसे बिगाड़ो मत
...बैर मत काढ़ो यूं खुद से...
सब के इतना मुंह लगा रहकर
लटकते-मटकते उठते-बैठते चटरपटर करते

अपना जीवन सस्ता मत बना लो
दर-दर मारे-मारे फिरकर
हर कहीं इसे कुलियों जैसे ढोते-घसीटते और बेपर्दा करते
यारबाशों और उनके लगाए मजमों की चालू चटोरागीरी के लिए
कि यह भासने लगे...
कोई ऐसा जो लग लिया हो पीछे छेड़खानी करते तुमसे।

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