साथ-साथ

Sunday, August 7, 2011

तीन और तिरसठ की प्रतिस्पर्धा

देश-विदेश में खूब घूम चुके और नौकरी भर परदेस में रहे हिंदी-मैथिली के प्रतिष्ठित कवि कीर्ति नारायण मिश्र सेवा निवृत्ति के बाद आजकल अपने पुश्तैनी परिवेश में बिहार के बरौनी जिलांतर्गत शोकहरा में रहते हैं। साहित्य अकादमी से पुरस्कृत कीर्ति नारायण जी की कविता और गद्य की 10 पुस्तकें अबतक प्रकाशित हो चुकी हैं। पढि.ए उनकी एक बहुत ही प्यारी कविता-

जया/ कीर्ति नारायण मिश्र

तुम्हारी शरारत भरी चुनौती पर
मैं भागता हूं तुम्हारे पीछे
कभी चौकठ
कभी किवाड़
कभी दीवार
से टकराकर गिरता हूं
सहलाने लगता हूं
अपना गठिया-ग्रस्त घुटना

तुम भागती हो तो भागती ही चली जाती हो
और मुड़ती हो तो आंधियों की तरह निकल जाती हो
- मुझे चिढ़ाती और अंगूठे दिखाती हुई
मैं लंगड़ाता हुआ
तुम्हारा पीछा करता रह जाता हूं
तीन और तिरसठ की यह प्रतिस्पर्धा
कितनी रोचक हो जाती है जया
जब मैं
हांफते-हांफते किलकारियां भरने लगता हूं
और तुम मेरे पास आ
मुझे प्यार से सहलाने-पुचकारने लगती हो।

1 comment:

  1. फ्रेंडशिप डे की शुभकामनाये
    ब्लॉगर्स मीट वीकली में आपका स्वागत है।
    http://www.hbfint.blogspot.com/

    ReplyDelete