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Friday, August 5, 2011

शासन करता है संदेह

दिवंगत कवि श्रीकांत वर्मा का आखिरी कविता संग्रह मगध 1984 में छपा था। इसकी तमाम कविताओं में ऐतिहासिक पात्र और स्थान आते हैं, लेकिन ये कविताएं इतिहास की नहीं, वर्तमान की हैं। पढि.ए यह कविता...

चिल्लाता कपिलवस्तु/श्रीकांत वर्मा

महाराज! लौट चलें-
उज्जयिनी पर शासन की इच्छा
मेरी समझ में
व्यर्थ है-
उज्जयिनी
उज्जयिनी नहीं रही-
न न्याय होता है
न अन्याय

जैसे कि,
मगध
मगध नहीं रहा-
सभी हृष्टपुष्ट हैं
कोई नहीं रहा
कृशकाय

किसी में दया नहीं
किसी में
हया नहीं
कोई नहीं सोचता,
जो सोचता है
दोबारा नहीं सोचता।

लगभग यही स्थिति है काशी की-
काशी में
शवों का हिसाब हो रहा है
किसी को
जीवितों के लिए फुर्सत नहीं
जिन्हें है,
उन्हें जीवित और मृत की पहचान नहीं!

मिथिला को लीजिए-
कल की बात है
राज्य करते थे विदेह
उसी मिथिला में
शासन करता है संदेह
किसी को धर्म का डर नहीं-
विश्वामित्र, वशिष्ठ
कोई नहीं रहा-
महाराज! सभी नश्वर हैं
कोई अमर नहीं।

चलना ही है तो कपिलवस्तु चलिए!
जो जाता है कपिलवस्तु
लौटकर नहीं आता
जो नहीं जाता कपिलवस्तु
जीवन गुजारता है
कपिलवस्तु-कपिलवस्तु चिल्लाता।

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