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Monday, June 13, 2011

इक दिन काजल हो गया चांद

चांद सबको प्यारा ही लगता है। कवियों और शायरों ने चांद को विषय बनाकर बहुत सारी कविताएं लिखी हैं। अब एक गजल कैफ भोपाली की भी पढ़ लीजिए...

गजल/कैफ भोपाली

जाने कैसा रोग लगा है सूखा डंठल हो गया चांद।
रंगत पीली पड़ते-पड़ते बिल्कुल पीला हो गया चांद॥

जाने कौन था आनेवाला मुंह न दिखाया जालिम ने,
रात को तारे गिनते-गिनते आखिर पागल हो गया चांद॥

हंसता चेहरा सबने देखा किसने देखी दिल की आग,
धीरे-धीरे जलते-जलते इक दिन काजल हो गया चांद॥

माहवशों की खातिर उसने बदले कितने-कितने रूप,
इक दिन बिंदिया, इक दिन कंगन, इक दिन पायल हो गया चांद॥

खून-खराबा करके जमीं पर चांद पे इंसां जा पहुंचा,
होगी वहां भी अब खूंरेजी, समझो मकतल हो गया चांद॥

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