साथ-साथ

Friday, June 3, 2011

जरूरी नहीं कि प्रेम-प्रेम का जाप किया जाए

एक अच्छी प्रेम कविता के लिए यह कतई जरूरी नहीं है कि प्रेम-प्रेम का जाप किया जाए। वरिष्ठ कवि भगवत रावत की यह कविता पढ़कर बखूबी इसे महसूस किया जा सकता है-

घिरा हुआ दुखों से/भगवत रावत

घिरा हुआ दुखों से
जब-जब सोचता हूं
अपना घर
अपनी दुनिया
और लिखते हुए
जब लिखता हूं एक शब्द
तुम
तो तुम ही तो होती हो
घर के हर कोने से बोलती हुई
परेशान

टटोलता हुआ उंगलियों से
अपने दुखों के अंधेरे में
जो कुछ उठाता हूं
अपने आसपास से
वह तुम्हारा चेहरा ही तो होता है
हर बार
मेरी कमजोर
उंगलियों पर सधा

इस समय भी
जब मैं लिख रहा हूं
तो एक छोटे-से बच्चे की तरह
किसी छपे हुए फूल पर
झीना कागज रखकर
तुम्हें ही तो उतार रहा हूं
अपने दुखों में।

4 comments:

  1. एक बेहतरीन कविता...

    ReplyDelete
  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..

    ReplyDelete
  3. इस समय भी
    जब मैं लिख रहा हूं
    तो एक छोटे-से बच्चे की तरह
    किसी छपे हुए फूल पर
    झीना कागज रखकर
    तुम्हें ही तो उतार रहा हूं
    अपने दुखों में।

    बहुत ही बढ़िया कविता,
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

    ReplyDelete
  4. bahut anokhe dhang se prem ko batati anoothi rachanaa.dil ko choo gai.badhaai aapko.



    please visit my blog.thanks.

    ReplyDelete