साथ-साथ

Wednesday, June 1, 2011

स्त्री के जीवन पर बोझ ही बोझ है

औरत की जिंदगी उतनी सहज-सरल नहीं है, जैसे पुरुषों की। एक स्त्री का जीवन तरह-तरह के बोझ से लदा होता है- जैसे कि सजना-धजना भी। वरिष्ठ कवि भगवत रावत की यहां दी जा रही दो कविताओं को पढ़कर इसका एहसास किया जा सकता है-

बाहर जाने की जल्दी

उसकी बिंदी की शीशी नहीं मिल रही है
खोपरे के तेल का डिब्बा
धोखे से लुढ़क गया है
टूटे दांतों वाला कंघा
बच्चों ने कहीं गुम कर दिया है
पाउडर का लंबा वाला डिब्बा
खाली पड़ा हुआ है
पिछले साल खरीदी साड़ी पर
अभी तक लोहा नहीं हुआ है
बालों को लंबा करने वाली चोटी उसने
हड़बड़ी में पता नहीं कहां धर दी है
उसे बाहर जाने की जल्दी है
पर जब तक
ये सारी चीजें
उसे मिल नहीं जाएंगी
वह क्या मुंह लेकर बाहर जाएगी।

उसकी थकान

कोई लंबी कहानी ही
बयान कर सके शायद
उसकी थकान
जो मुझसे
दो बच्चों की दूरी पर
न जाने कबसे
क्या-क्या सिलते-सिलते
हाथों में
सुई-धागा लिए हुए ही
सो गई है।

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