साथ-साथ

Sunday, May 15, 2011

तेरी ही आंधी है

सदानंद शाही बहुचर्चित साहित्य-पत्रिका साखी के संपादक और साहित्य के महत्वपूर्ण विमर्शकार हैं। उन्होंने कुछ बहुत अच्छी कविताएं भी लिखी हैं। पढि़ए उनकी एक कविता, जो बताती है कि समय के प्रवाह में एकाकार होने की कोशिश में ही जिंदगी अपना अर्थ ग्रहण करती है- उसे प्राप्त करती है।

तुम्हें खोजते/सदानंद शाही

नदियों के कल-कल में तुम गूंज रही हो
चिडिय़ों के कलरव में तेरी ही खिलखिल है
इस जंगल से उस जंगल तक
इस सागर से उस सागर तक
इस पर्वत से उस पर्वत तक
यह जो भागा-फिरता हूं
तेरी ही आंधी है
जिसमें उड़ता ठिठका अटका फिरता
घूम रहा हूं
इस धरती से उस धरती तक
तुम्हें खोजते
तुमको पाते और बिछुड़ते
कितनी सदियां बीत गईं
और कितनी सदियां बीतेंगी।

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