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Tuesday, May 3, 2011

पानी पर पहरा अलबेले दीवान का

युवा कवि सर्वेंद्र विक्रम की पानी को लेकर लिखी यह कविता एक तरह की निर्जली यात्रा है। पानी को लेकर लिखी बहुतेरी कविताओं से बिल्कुल अलग। जल के हाहाकार से भरी यह कविता पढि़ए-

पानी/सर्वेंद्र विक्रम

जब घर से चले
तो रास्ते भर कहीं नहीं था पानी
माथे पर उड़ रही थी धूल
सूखे हुए पोखरे और ताल
नहरें तो थीं ही अभिशप्त

गाड़ी चली तो किसी किस्से की बात चल पड़ी
जिसमें एक चिडिय़ा थी प्यासी
जूठा कर दिया था जिसने पानी
राजा के पीने लायक नहीं रहा,
दुखहरन देख रहे थे आम राय
चिडिय़ा है सजा की हकदार
पानी पर पहरा अलबेले दीवान का
नदियों का गिरवी जल
स्रोतों और झरनों का पट्ïटा धनवान का

पानी स्टेशनों पर भी नहीं था
अभागे थे नल
हालांकि सही जगहों पर जड़े हुए थे,
लेकिन पानी तो बहुत था, बताते हैं
कागज-पत्रों में
इतना था कि कहीं-कहीं बाढ़ सी आई हुई थी
फोटो भी गवाह थे
युवक-युवतियां रेन-डांस का मजा लूट रहे थे
हरी घास पर लान में,
फिर यहां क्यों नहीं था पानी
पानी क्यों नहीं आया
रूठकर चला गया कहां,
बतानेवालों ने बताया
आसमान पर किसी काली चादर के बारे में
चूल्हे में जलाई जाती लकड़ी के बारे में
मोटरों के धुएं और जंगल के बारे में
वातावरण की गर्मी के बारे में
रास्ते भर सकपकाए से डरे-डरे रहे दुखहरन
जैसे उन्हीं की वजह से पानी कहीं और चला गया
सिर्फ वही दोषी हों
पानी के इंतजाम की पड़ताल के लिए
पानी नहीं आया इस बार तय समय पर
नुकसान का अंदाजा लगाने के पहले
सबकुछ अपनी आंखों देखने के लिए
दौरे पर थे हाकिम-हुक्काम
पानी के बारे में निर्णायक भाषा में
वही लोग कह सकते थे कि पानी कहीं नहीं है
ज्यादातर इस पक्ष में थे
इसे घोषित भी किया जाए
सिर्फ तय करना शेष रहा घोषणा का प्रारूप
और एक सटीक अवसर,
इसके और भी कई फायदे थे

जब गाड़ी चली तो बनी रही सरल सी उम्मीद
दुखहरन भी घर से चले थे लेकर सत्तू और नमक
थोड़ा-सा चना-चबेना और दो डली गुड़
उन्हें पानी पर भरोसा था
कहीं न कहीं तो होगा ही
मिल जाएगा हर एक को जरूरत भर
उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था
कि पानी साथ लेकर चलनेवाली चीज है
एक दिन पानी भी बिकेगा
मन में थीं पानी की अनेक-अनेक स्मृतियां
पुरइन के पत्ते पर बूंद जैसा कांपना
कहानियों वाली गंगी और ठाकुर का कुआं
मार फौजदारी और जेहल-जेलखाना
चचिया ससुर का नकल उतारना
लखनऊ टेशन का आंखों देखा बयान
धुंधलके में टिमटिमाती आवाजें : हिंदू पानी-मुसलमान पानी
सुना महात्माजी ने भी किया है जिकिर
जब वे पधारे थे राजधानी में फलां सन् में

महज किस्सा भर नहीं रहा
पानी का बंटवारा
लेकिन बिकेगा, यह बात कुछ!

गते अषाढ़ जाते सावन जा रहे थे दुखहरन
घरबार छोड़ उधर पश्चिम की ओर
छोटे-बड़े टेशन-पड़ाव पार करते हुए,
पानी बिकने के लिए तैयार था या नहीं पता नहीं
लेकिन बिक रहा था और कोई मोलभाव नहीं।

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