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Wednesday, April 13, 2011

बिजली के तार पर बैठा हुआ तन्हा पंछी

कैफी आजमी की गजलों में जमाने की फिक्र बड़ी शिद्दत से महसूस की जा सकती है। उनकी गजलें ऐसा आईना हैं, जिनमें हमारे वक्त की शक्ल-ओ-सूरत दिखाई देती है। जैसे यह गजल-

शोर यूं ही न परिंदों ने मचाया होगा
कोई जंगल की तरफ शहर से आया होगा।

पेड़ काटने वालों को ये मालूम तो था
जिस्म जल जाएंगे जब सर पे न साया होगा।

बानी-ए-जश्ने-बहारां ने ये सोचा भी नहीं
किसने कांटों को लहू अपना पिलाया होगा।

अपने जंगल से जो घबरा के उड़े थे प्यासे
ये सराब उनको समंदर नजर आया होगा।

बिजली के तार पे बैठा हुआ तन्हा पंछी
सोचता है कि वो जंगल तो पराया होगा।

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