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Monday, April 11, 2011

मेरा पांव किसी और ही का पांव लगे

पूर्वी उत्तर प्रदेश में आजमगढ़ जिले के मिजवां गांव में 19 जनवरी 1919 को जन्मे अतहर हुसैन रिजवी अदब की दुनिया में कैफी आजमी बन गए। मुंबई की फिल्मी दुनिया ने उन्हें लोकप्रियता की बुलंदियों तक जरूर पहुंचाया, लेकिन उसकी चकाचौंध न कभी उन्हें भरमा पाई और न भटका पाई। वे अपने गांव से हमेशा जुड़े रहे। दरअसल, कैफी साहब की शायरी की बुनियाद उनके अपने गांव की ठोस जमीन पर ही कायम है, इसीलिए वे मुल्क के शायर हैं- आम इंसान के शायर हैं। पढि़ए उनकी यह गजल-

वो कभी धूप कभी छांव लगे
मुझे क्या-क्या न मेरा गांव लगे।

किसी पीपल के तले जा बैठे
अब भी अपना जो कोई दांव लगे।

एक रोटी के तअक्कुब में चला हूं इतना
कि मेरा पांव किसी और ही का पांव लगे।

रोटी-रोजी की तलब जिसको कुचल देती है
उसकी ललकार भी इक सहमी हुई म्यांव लगे।

जैसे देहात में लू लगती है चरवाहों को
बंबई में यूं ही तारों की हसीं छांव लगे।

1 comment:

  1. bahut sundar rachna

    रामनवमी पर्व की ढेरों बधाइयाँ एवं शुभ-कामनाएं

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