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Wednesday, March 30, 2011

खाली दिमाग शैतान का घर

यह कहावत तो सबको पता है कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है, जो तरह-तरह के कुचक्र रचता रहता है। यानी बैठे-ठाले मन में विचार नहीं आते। दरअसल, कर्म का अनुगमन करते हैं विचार। पढि़ए कवि मुक्तिबोध की दो छोटी कविताएं-

विचार आते हैं

विचार आते हैं-
लिखते समय नहीं,
बोझ ढोते वक्त पीठ पर
सिर पर उठाते समय भार
परिश्रम करते समय
चांद उगता है व
पानी में झलमलाने लगता है
हृदय के पानी में।

विचार आते हैं
लिखते समय नहीं,
... पत्थर ढोते वक्त
पीठ पर उठाते वक्त बोझ
सांप मारते समय पिछवाड़े
बच्चों की नेकर फचीटते वक्त!

पत्थर पहाड़ बन जाते हैं
नक्शे बनते हैं भौगोलिक
पीठ कच्छप बन जाते हैं
समय पृथ्वी बन जाता है...

बेचैन चील

बेचैन चील!
उस-जैसा मैं पर्यटनशील
प्यासा-प्यासा,
देखता रहूंगा एक दमकती हुई झील
या पानी का कोरा झांसा
जिसकी सफेद चिलचिलाहटों में है अजीब
इनकार एक सूना!!

1 comment:

  1. खाली दिमाग शैतान का घर होता है, और भरा दि‍माग? वो भी कहीं नहीं पहुंचता।


    पत्थर पहाड़ बन जाते हैं
    नक्शे बनते हैं भौगोलिक
    पीठ कच्छप बन जाते हैं
    समय पृथ्वी बन जाता है...

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