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Tuesday, March 15, 2011

घर में लगाना चाहता है दुनिया का सबसे मजबूत ताला

बिहार में वैशाली जिले के एक गांव में 1954 में जन्मे कवि मदन कश्यप समकालीन कविता में एक जरूरी उपस्थिति के तौर पर देखे जाते हैं। उनमें निरंतरता भी है और विविधता भी। पढि़ए उनकी जोकर सीरीज की तीन कविताएं-

जोकर/मदन कश्यप

एक
एक दिन अचानक ताश की गड्डी से उछलकर
सिंहासन पर जा बैठा जोकर
देखते रह गए बादशाह-बेगम
गुलाम तो खैर गुलाम थे
दहले-नहले भी अवाक्
छक्कों-पंजों का कुछ नहीं चल रहा था
तो दुग्गियों-तिग्गियों को कौन पूछे

हालांकि लाल पान की बेगम जोर से चीखी
और ईंट के बादशाह ने ऐसे दांत पीसे
कि पूरी बत्तीसी ही चूर हो गई
चिड़ी का गुलाम असमंजस में देर तक
सिर झटकता रहा
तीनों इक्के गोलबंद हुए
लेकिन अब क्या हो सकता था
अब तक तो तख्त पर जम चुका था जोकर।

दो
इसे हत्या की खबरें सुनाओ
यह पलकें झपकाएगा
इसे भूख और गरीबी की बातें बताओ
यह पलकें झपकाएगा
इसे विकास की योजनाएं समझाओ
यह पलकें झपकाएगा

इसके सपाट पुते चेहरे और
भावशून्य आंखों में
भीतर तक कुछ नहीं है

पांच मिनट इसके लिए बहुत कठिन है
यह पांच मिनट तक किसी की बातें
नहीं सुन सकता
पांच मिनट तक किसी विषय पर
नहीं बोल सकता
पांच मिनट तक किसी मुद्दे पर
नहीं सोच सकता
हर दूसरे मिनट एक मजाक जरूरी है
इसकी सेहत के लिए

यह केवल अपने मसखरेपन की मूर्ख-मुद्राओं से
भोले-भाले लोगों को फुसलाना जानता है
जो काफी है कुर्सी पर काबिज रहने के लिए।

तीन
अरे यह क्या हुआ सहसा
यह जोकरई के प्रति गंभीरता है
या गंभीरता की जोकरई
बेहद संजीदा हो चला है जोकर
सिंहासन सहित उड़ जाना चाहता है यह
ऊंचे आसमान में
हवाई जहाज पर चढ़कर
हवाई जहाज से भी तेज भागना चाहता है
जाने कहां पहुंचना है इसे

यह जल्दी-जल्दी पूरा करना चाहता है
अपना सब कामकाज
आज का बाजार बंद होने से पहले
पूरा बाजार खरीद लेना चाहता है
अपने घर में लगाना चाहता है
दुनिया का सबसे मजबूत ताला
दुनिया के सबसे ताकतवर आदमी को
बनाना चाहता है अपना अंगरक्षक

कहीं बहुत दूर पीछे छूट गया है अब
तिरपनवें पत्ते का सुकून।

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