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Saturday, February 26, 2011

छोटी कविताओं में बड़ा अर्थ

जरूरी नहीं कि लंबी कविताओं में ही बड़े अर्थ हों- छोटी कविताओं में भी बड़ा अर्थ हो सकता है। उदाहरण के लिए कवि नरेश सक्सेना की तीन कविताएं यहां प्रस्तुत हैं...

मढ़ी प्रायमरी स्कूल के बच्चे

उनमें आदमियों का नहीं एक जंगल का बचपन है
जंगल जो हरियाली से काट दिए गए हैं
और अब सिर्फ आग हो सकते हैं
नहीं
बच्चे फूल नहीं होते
फूल स्कूल नहीं जाते
स्कूल जलते हुए जंगल नहीं होते।

सीढिय़ां

मुझे एक सीढ़ी चाहिए
दीवार पर चढऩे के लिए नहीं, बल्कि
नींव में उतरने के लिए
मैं किले को जीतना नहीं
उसे ध्वस्त करना चाहता हूं।

दरार

खत्म हुआ ईंटों के जोड़ों का तनाव
प्लास्टर पर दिखने लगी हल्की सी मुस्कान
दौड़ी-दौड़ी चींटियां ले आईं अपना अन्न-जल
फूटने लगे अंकुर, जहां था तनाव
वहां होने लगा उत्सव
हंसी
--हंसी
हंसते-हंसते दोहरी हुई जाती है दीवार
खत्म हुआ ईंटों के जोड़ों का तनाव।

2 comments:

  1. सही लिखा है आपने छोटी कविताएँ बड़ा अर्थ लिए हैं। दरार..बेहद अच्छी लगी।

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  2. मुझे एक सीढ़ी चाहिए
    दीवार पर चढऩे के लिए नहीं, बल्कि
    नींव में उतरने के लिए
    मैं किले को जीतना नहीं
    उसे ध्वस्त करना चाहता हूं।
    अतिसुन्दर भावाव्यक्ति , बधाई

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